Friday 25 December, 2009

वाह गुरू!



इलाहाबाद में कुछ "गुरू' लोग हुआ करते हैं। गुरु नहीं "गुरू'लोग। ऐसा लिखते समय मैं उन गुरुओं की बात नहीं करता, जो अब इस धरती पर नहीं हैं। ऐसे गुरुओं में छुन्नन गुरू भी हुआ करते थे। प्रखर समाजवादी छुन्नन गुरू। उनके बारे में कहा जाता था-""हाथ में सोंटा, मुख में पान, छुन्नन गुरू की ये पहचान।'' यह भी कि छुन्नन गुरू ने जनता के किसी सवाल पर अपना सोंटा किसी अधिकारी के टेबल पर रख दिया तो, वह तभी उठेगा जब समस्या का समाधान हो जाय। छुन्नन गुरू की याद झारखंड के "गुरू जी'के संदर्भ में इसलिए आती है कि वे भी जन नेता रहे हैं। झारखंड के निर्माण में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता, उससे भी ज्यादा आदिवासियों की लड़ाई में उनकी भागीदारी को। जल, जंगल और जमीन पर वहां के रहने वाले लोगों की ही मिल्कीयत हो, यह मुद्दा रहा है गुरू जी का। इसीलिए वे झारखंड, खासकर आदिवासी क्षेत्र में आदर के पात्र हैं। गुरू जी की उपाधि भी उनके किसी एक अथवा कुछ शिष्यों ने नहीं दी है। यह सम्मान उनके लाखों लाख अनुयायियों का दिया हुआ है, जिसे मीडिया ने इधर खूब प्रचारित किया। झारखंड विधान सभा के चुनाव परिणाम आये, तो किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के बावजूद एक बात तय दिखी। वह यह कि गुरू जी की गुरुता कायम है, वे ही सबसे बड़े नेता हैं। उनके दल झारखंड मुक्ति मोर्चा को मिली सीटों के आधार पर तय हो गया कि वे गुरु ही नहीं हैं, अब "राजगुरु' भी बन सकते हैं। पर गुरू जी को इतने पर संतोष नहीं है। राजगुरु तो राजतिलक करता है, फिर राजा को राज चलाने का मंत्र भी दिया करता है। गुरू जी खुद राजा बनने से कम पर तैयार नहीं हैं। उन्हें गंवारा नहीं है कि आदिवासी राज्य के लिए लड़ने के बाद बने राज्य में राज करने के सुख से वंचित रह जायं। फिर राज परिवार की एक परंपरा भी होती है। लिहाजा वे यह भी तय कर लेना चाहते हैं कि उनके सिंहासन खाली करने पर उनका सुपुत्र ही उस पर विराजमान हो। इसीलिए चुनाव परिणाम आने के दूसरे दिन उन्होंने सरकार में अपने लिए सीएम और अपने बेटे के लिए डिप्टी सीएम बनने की शर्त रख दी है। देखना है कि इसे बीजेपी स्वीकारती है, अथवा कांग्रेस। फिलहाल तो गुरू जी "गुरू' ही निकले। उनहें कांग्रेसी नेता सुबोधकांत सहाय के यह याद दिलाने पर कोई मलाल नहीं है कि वे दो बार सीएम पद के लिए अयोग्य करार दिए गये हैं। सहाय का इशारा मुख्यमंत्री बने शीबू सोरेन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगने, और दूसरी बार सीएम के रूप में उपचुनाव हार जाने की ओर है। जो भी हो जोड़तोड़ की राजनीति में जो ज्यादा जरूरी होता है, महत्व उसी का ज्यादा होता है। फिर झारखंड में तो निर्दलीय मधु कोड़ा का भी बड़ी पार्टी कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बनने का उदाहरण है। उस कोड़ा का, जो करीब चार हजार करोड़ रुपये की अघोषित संपत्ति रखने के आरोप में जेल में हैं। जेल गुरू जी भी हो आये हैं। आदिवासियों का दर्द दूर करने की लड़ाई में, और झारखंड निर्माण के संघर्ष में भी। फिर वे हत्या, हत्या की कोशिश और घोटालों के आरोप में भी जेल जा चुके हैं। यह अलग बात है कि अभी तक इन आरोपों में से कोई सिद्ध नहीं हो सका है। गुरू जी यह मानने वालों में शामिल हैं कि जब तक आरोप सिद्ध नहीं होते, आरोपी कसूरवार नहीं होता। उन्हे इससे क्या मतलब कि जब तक आरोप गलत न ठहरा दिए जायं, कोई व्यक्ति शंकाओं से परे नहीं हो जाता। फिर उन्होंने यह तो सोचना भी गंवारा नहीं किया होगा कि ऐसे व्यक्ति को सार्वजनिक पदों से दूर रहना चाहिए। आखिर वे "गुरू' जो हैं। ऐसे "गुरू' जो सम्मान के पात्र भी होते हैं, अपने "फन' के माहिर भी होते हैं। गुरू जी को अपने समर्थकों में खूब सम्मान मिलता है। वे अपने फन के माहिर किस हद तक हैं,यह भी समय-समय पर सामने आता रहता है। अभी तो बस यही कहने का मन करता है-वाह गुरू!

1 comment:

sablog said...

aise hi guru banaras me bhi milte hain. lekin we rajguru nahi hote, darasal wahan to har aadmi hi GURU hota hai. aur apni GURUTTA gahe bagahe dikhata bhi hai,,,