Saturday, 5 December 2009

नाराज है यमुना!

मेरे गृह जनपद के ख्याति प्राप्त एक संस्कृत विद्वान को दिल्ली जाना था। वहां के लिए उन्हे हवाई यात्रा की सुविधा मिली, तो उन्होंने हवाई जहाज से यात्रा करने से मना कर दिया। इनका तर्क निराला था कि जिस वाहन का कोई आधार ही नहीं हो, उससे यात्रा नहीं करनी चाहिए। उनकी ओर से सोचा जाय तो तर्क में दम है। शायद इसी लिए बहुत पहले हमारे यहां से यूरोपीय देशों में जाना वर्जित माना गया था। लगता है कि वायु और जल यात्रा की दु·ाारियां ही इसका कारण रही होंगी। वायु और जल मार्ग से दूर जाना आसान नहीं था। पूर्वी उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में निकले लोग कभी मारिसस, सूरीनाम आदि देशों की ओर गये तो वहीं के होकर रह गये (आज भले वे अपनी जड़ खोजने यहां आते रहते हैं)। फिर हिंदू मानसिकता वाले लोग "मलेच्छों' के देश जाने से बचते रहे हैं। दौर बदला तो अपने ही देश में दूर तक जाने के लिए हवाई और जलमार्गों का विकास हुआ। हिंदू मतावलंबियों ने रास्ता निकाल लिया-गांव के पास नदी तो पार करते ही है, कुछ और नदी अथवा समुद्र सही। सो नाविक जैसे नदी पार करते समय अपने आराध्य का स्मरण करता है, आप भी कर लीजिए। लगता है नदियों पर पुल बनाने वालों को ये तरीका पसंद आया। पुल निर्माण शुरू करो तो शिलान्यास के लिए पूजा, पुल से गुजरना शुरू करो तो उद्घाटन के नाम पर अनुष्ठान। यह धड़ाधड़ होने लगा। देश की महत्वाकांक्षी मेट्रो प्रोजेक्ट इसमें पीछे क्यों रहे। दिल्ली की सीमा से बाहर यूपी जाने के लिए यमुना नदी पार किया तो पूजा-अनुष्ठान हुए। यहां तक कि आर्य समाजी बहन मायावती ने नोएडा की ओर से ट्रेन को झंडी दिखाई तो उन्होंने न सही, उनके अधिकारियों ने ई·ार का आभार जताया। पर एक गलती शायद रह गई। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित रही हों, उत्तर प्रदेश की बहन जी, अथवा मेट्रो मैन श्रीधरन साहेब, किसी को यमुना मैया की याद न रही। उस यमुना की, जिसे दोनों प्रदेश की जनता पहले से ही कलुषित करती रही है। उस यमुना का सीना चीरकर मेट्रो जब यमुना बैंक तक पहुंची, तो भी उसकी पूजा नहीं की गई। यमुना बैंक तक निकल ही आये थे, तो सिटी सेंटर तक जाने में कोई दिक्कत होनी नहीं थी। आपको लगता होगा कि मैं यमुना से आपको डराना चाहता हूं। ऐसा करने में मेरा कभी यकीन नहीं रहा है। यमुना वैसे भी हर बरसात में दिल्ली के झोपड़ पट्टी वालों को डराती है। मैं तो उस ओर आपका ध्यान खींचना चाहता हूं,जो आये दिन नोएडा और दिल्ली के बीच मेट्रो यात्री झेल रहे हैं। यमुना बैंक से ट्रेन इंद्रप्रस्थ की ओर चले, अथवा इंद्रप्रस्थ से यमुना बैंक की ओर,आये दिन रुक जा रही है। फिर घोषणा शुरू हो जाती है-इस यात्रा सेवा में थोड़ा विलंब होगा, इस असुविधा के लिए हमें खेद है। याद रखिए कि इन दोनों स्टेशनों के बीच ही यमुना है। मैं नहीं कहता कि यमुना क्यों मेट्रो ट्रेनों को ठीक बीचोबीच उस जगह पर रोक देती है, जहां ट्रेन के अंदर से आप उसकी बदहाली निहार सकते हैं। हम जानते हैं कि मेट्रो इसलिए रुकती है कि उसे सिग्नल देने की व्यवस्था अभी सुचारु नहीं हुई है। हम - आप ये तो जानते ही हैं कि देश की गहरी नदियों में शुमार यमुना दिल्ली आकर नालों में बदल जाया करती है। फिर भी हमारे देश में नदियों का महात्म्य है कि छठ पर्व पर लाखों लोग इस सूखी नदी के किनारे आदर भाव से एकत्र हो जाते हैं। तब वोट की चिंता में ही सही, दिल्ली सरकार की मुखिया भी छठ घाटों की चिंता में निकल पड़ती हैं। पर फिर याद रखने की बात है कि यह छठ पूजा करने वाले मतदाताओं की चिंता है, उस यमुना की नहीं जिसके तट पर ये एकत्र होते हैं। माना कि यमुना की शुद्धि के लिए कई सौ करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट है। सवाल तो ये है कि यमुना के लिए वे व्यावसायिक प्रतिष्ठान आगे क्यों नहीं आते, जो रोज करोड़ से उपर की कमाई कर रहे हैं। मैं तो यमुना से माफी ही मांग सकता हूं। मैं लोगों को बता सकता हूं कि यमुना नाराज है, उससे आप भी माफी मांगे। जिनके पास धन नहीं है लोगों को जगाकर। जिनकी जेब भारी है वे यमुना की मुक्ति में कुछ धन लगाएं। क्या यह नहीं हो सकता? फिर धन के साथ कोई ऐसा योजनाकार भी जरूरी है, जो यमुना के साथ अमर हो सकने की क्षमता रखता हो।

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