Saturday 13 March, 2010

ओ बाबा मेरे! जरा बचके!

तुतलाती आवाज में बच्चे ने अपने बाबा से पूछा-आजकल बाबा लोगों को पुलिस पकड़ क्यों रही है? बाबा बिचारे नन्हीं जान को कैसे समझाते कि पकड़े जाने वाले बाबा उनकी तरह के नहीं हैं। वह तो पहुंचे हुए हैं, यानि उनकी पहुंच बहुत उपर तक है। आजकल पहुंच में कुछ कमी आ गई होगी। इसलिए बच नहीं पा रहे। पहले भी लोग शिकायतें करते थे, पर शिकायत करने वाले बहुत कम होते थे। इतने कम कि अंगुलियों पर गिनने के काबिल भी नहीं होते थे। दूसरी तरफ श्रद्धालुओं का अथाह समुद्र हुआ करता था। अब समुद्र में एक बूंद की आवाज कौन सुनता है? वहां तो समुद्र की दहाड़ होती है, कभी-कभी डर की सीमा तक जाने वाली। बूंदों की अनगिनत श्रृंखलाएं मिलकर समुद्र का निर्माण करती हैं। उनमें कुछ अलग भी हो गर्इं तो क्या हुआ? उसी तरह जैसे अपार बहुमत से चुनी हुर्इं सरकारें सदन में कुछ भी पास करा लिया करती हैं, समुद्र में भी बूंदों का समवेत स्वर विद्रोही आवाज को दबा देता है। श्रद्धा के समुद्र में दबी हुई कुछ बूंदे तिलमिलाकर रह जाती हैं। फिर भी नियति अपना रंग दिखाती है, वह समय भी आता है जब उपर वाला आपकी करतूत को सबके सामने कर देता है। बाबा आगे बोले- इन बाबाओं के साथ भी यही हो रहा है,वह सभी कुछ दिखाया जा रहा है जो इनके एकांतिक साधना के सामान हुआ करते थे। जहां मनुष्यों की सांस तक साधना में बाधक हुआ करती थी, अब वहां कैमरे लिए कई कई हाथ-पैर पहुंच रहे हैं। यानि पहुंचे हुओं तक वो लोग पहुंचने लगे हैं जिन्हे अयाचित माना गया है। बच्चा इतनी देर में ऊब चुका था, शायद अपने बाबा को दूसरे बाबाओं की तरह बोलते हुए देखकर घबराने भी लगा था। उसे अचानक पता नहीं क्यों ऐसा लगा कि उसके बाबा के प्यारे चेहरे पर बड़ी बड़ी दाढ़ी निकल आई है। कुर्ता-पाजामा की जगह बाबा के शरीर पर गेरूआ वस्त्र ने ले ली है। बाबा के गले में रुद्राक्ष की कई मालाएं आ जायं, वे कोई मंत्र बोलकर अथवा नागिन डांस कर उसे मोहित करने की कोशिश करें कि, सकपकाया बालक बोल उठा- ओ बाबा मेरे! जरा बचके!

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