Sunday, 15 November 2009

एक बूंद और.....


ब्लॉगर्स के महासमुद्र में एक बूंद इस आशा के साथ कि मंथन की प्रक्रिया में यह भी भागीदार होगी। समुद्र मंथन में स्पष्ट तौर पर हमें दो पक्ष दिखाई देते हैं। पर देव और दानवों के साथ मेरु, रज्जु और यहां तक कि खुद समुद्र के उदर की, समुद्र मंथन में भागीदीरी से कैसे इंकार कर सकते हैं। समुद्र के महोदर में ही तो होते हैं अथाह जलकण। उस जलराशि के एक-एक बूंद का महत्व क्या संपूर्ण समुद्र के अस्तित्व से अलग है। चिंतन के दौर चलते रहते हैं, बहस स्वाभाविक है। फिर भी अणु से परमाणु युग को भी पार करता समय, समुद्र के एक बूंद के अस्तित्व को कैसे नकार सकता है। पिछले साल (संभवतः जून में) "जब-तब' नाम से एक ब्लॉग शुरू किया था, पर वह शुरूआत ही रह गई। उम्मीद जाहिर की थी कि समाज में हो रही हलचल पर कभी-कभी खुद भी कुछ कहा करूंगा। कतिपय कारणों से स्थान परिवर्तन हुआ...और फिर स्मृति भ्रम कि उसे चला नहीं सका। जब-तब के बाद खुद के स्पष्ट नाम से उपस्थिति का मकसद सिर्फ चर्चाओं में यदा-कदा भागीदारी ही है। एक बूंद के साथ प्रारंभ इसलिए कि आइए, मिलकर इस तरह के कई बूंद, और अंततः महासमुद्र का बहु अंश बनाएं। ऐसा निवेदन करते समय यह भ्रम कत्तई नहीं है कि यह प्रक्रिया जड़ है। यह क्रम तो चलता ही रहता है। विचार करें कि एक बूंद, अथवा समाज में एक व्यक्ति की उपस्थिति क्या संपूर्ण समाज, या यूं कहें कि दुनिया के लिए अर्थवान नहीं है। यह सवाल नहीं है, शायद खुद के लिए कैनवस भी, जिस पर रह रहकर रंग उभरा करेंगे। ये रंग सिर्फ एक कूची का नहीं होगा। आइए, कुछ रंग आप भी भरिए! ये रंग कल्पनाओं के हो सकते हैं, पर अंत में फिर सवाल कि रंग यथार्थ भी तो दिखाते हैं?

2 comments:

bindas bol said...

श्रद्धेय गुरू जी ब्लाग शुरू करने की ढेरों शुभकामनाएं...आशा है अब आपके ब्लॉग के जरिए भी मुझे आपके आशिर्वचन और दुनिया की हकीकत से रूबरू कराने वाले उद्गार मिलते रहेंगे...एक बार पुन:शुभकामनाएं....आपका हार्दिक अभिनंदन है।

Batangad said...

बधाई हो। इस ब्लॉग के सतरंगी (ये कहने के लिए होता है यहां तो अनगिनत रंग है)- संसार में आपका स्वागत है। अब इसको नियमित रखिएगा।

कमेंट मॉडरेशन में जाकर वर्ड वेरीफिकेशन हटा दीजिए। टिप्पणी करने में मुश्किल होती है।