Wednesday, 25 November 2009

आत्म परिचय


सर्वोच्च सदनों में बैठे हमारे प्रतिनिधि जब भी निराश करते हुए से लगते हैं, मन व्यथित हो उठता है। पिछले दो दिनों से अयोध्या विवाद जैसे मसले पर सांसदों ने जिस गैर जिम्मेदारी का परिचय दिया है, और कुछ कहने की जगह एक बार फिर जेहन में उभर आई अपनी कुछ पंक्तियां ही प्रस्तुत कर रहा हूं.......
मैं कौन हूं, क्या हूं, पता है दुनिया को
मैं इक्कीसवीं सदी के भारतीय का प्रतिरूप
जिसे अपने दुःखों का बोध तो है
पर अंतर में दिवा स्वप्न पालता है।
उसी की आस में बैठा
उसी के चिंतन में अपना मस्तिष्क सालता है।
पर मेरा अपना गौरवमयी इतिहास भी है
मैं वंशज हूं श्रद्धा और मनु का
अंश हूं कर्तव्य के उन धुनी का।
मेरा यह शरीर मात्र अस्थि पंजर नहीं
इसमें दधीचि की हड्डियों का अंश है
जिससे देवराज ने बनाई प्रत्यंचा
असुरों का किया संहार
सृष्टि को भयमुक्त बनाया।
और वर्तमान मेंमैं अग्नि राख में पड़ा
अनबुझा एक तिनका
चाहे पैरों तले रौंद डालो
अपनी धरा में विलीन हो जाऊंगा
या बगल के कूड़े पर फेंक दो
उसे धरा में विलीन कर दूंगा।
तो मुझे मेरा भूत या वर्तमान, कुछ भी कह लो
पर मुझे आज का राजनीतिज्ञ न कहना
जो सुबह को और, शाम को कुछ और
कहने के और, करने को कुछ और।
इसलिए कहता हूं
कि मुझे मेरा भूत या वर्तमान, कुछ भी कह लो
पर मुझे आज का राजनीतिज्ञ न कहना।

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