Monday, 16 November 2009

बाल गंगाधर तिलक की याद


महाराष्ट्र में मराठा मानुष के नाम पर जब छिछली राजनीति चल रही है, बाल गंगाधर तिलक को याद करना उचित होगा। सन् 1896 में गणोशोत्सव की शुरूआत कर उन्होंने तत्कालीन जनमानस को धर्म के सहारे सामाजिक समरसता से जोड़ने की कोशिश की थी। आज गणेशोत्सव महाराष्ट्र की सीमा लांघ कर देश के किन किन प्रांतों तक पहुंच गया, चर्चा का अलग विषय हो सकता है। कहना तो यह है कि आज उसी महाराष्ट्र में देश के पर प्रांतियों के खिलाफ जहर उगलने का दौर जारी है। शिव सेना मराठा स्वाभिमान को छत्रपति शिवाजी और भगवान शिव के त्रिशूल से आगे महाराष्ट्र बनाम संपूर्ण राष्ट्र तक ले जाने की कुत्सित कोशिश कर रही है। यह मसला इतना आसान नहीं है, जिस पर टिप्पणी मात्र के बाद आगे निकल लिया जाय। मुंबई में उत्तर भारतीयों पर हमले की घटनाओं से उभरा विवाद समुद्री सीमाओं पर छठ पूजा तक पहुंच गया था। यह उसी महाराष्ट्र की राजधानी में हुआ, जिस सूबे में तिलक महाराज ने गणोशोत्सव को राष्ट्र उत्सव से जोड़ा था। अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ाई में गणोत्सव में एकत्र भारी भीड़ को राष्ट्रीय भावनाओं से ओत प्रोत किया जाता रहा। उसी धरती पर अब प्रांत से पहले देश की बात करने वालों को मराठा मानुष पर आघात करने वाला बताया जा रहा है। ठीक है कि सचिन तेंदुलकर पर बाला साहेब ठाकरे की कटु संपादकीय पर शिवसेना के एक नेता ने सफाई दे दी है। उन्होंने इसे एक बुजुर्ग की सलाह भर बताया है। फिर भी हमें याद रखना होगा कि यह तब हुआ, जब लगभग पूरे देश ने सचिन के इस बयान का साथ दिया कि वे मराठा अथवा मुंबईवासी होने के पहले एक भारतीय हैं। हमें सचिन के इस बयान का न केवल स्वागत करना चाहिए, बल्कि औरों को भी उनसे प्रेरणा लेने की जरूरत है। आज कुछ ही लोगों को ध्यान होगा कि पूर्व अभिनेत्री और सांसद जया बच्चन को इसी तरह का अपना बयान करीब करीब वापस लेना पड़ा था। काश,वह जल्दी में नहीं होतीं, और उनका भी तब समर्थन किया गया होता। जरूरत इस बात की है कि महाराष्ट्र की राष्ट्रीय विभूतियां, चाहें वे किसी भी क्षेत्र की हों, मिलकर सचिन के पक्ष में बयान दें। इस मामले में देर उचित नहीं है। महाराष्ट्र की जनता ने हाल ही में मतदान के जरिए अपना फैसला सुना दिया है। वह दिन दूर नहीं, जब हिंदू महासभा जैसी कट्टर संस्था की तरह शिवसेना का भी कोई नामलेवा नहीं रह जायेगा। हिंदू महासभा से शिवसेना को भी सबक लेनी चाहिए कि धर्म और क्षेत्र विशेष के नाम पर राजनीति का कोई स्थाई भाव नहीं हुआ करता।

3 comments:

bindas bol said...

aap ne bilkul shi jagah per prahar kiya hai..agar aaj tilak ji ki aatma ye sab dekh rhi hogi...to vo kaisa mahsus kar rhi hogi...btane ki jarurat nhi...lekin mere khayal se sawaal ye bhi hai....ki dharm aur sthan vishesh ke nam per jahar ugalne walo ke khilaf koi kanuni kadam kyo nhi uthaya jata..kya 47 me banaaye gye kanune ke dum per hi desh ki bagdor samhali jati rahegi....isliye mera to mannana hai...ki is tarah ki gandi rajniti karne walo ke khilaf koi na koi pravdhan hona chahiye

vichar said...

तिलक जी ने गणेश पूजा के जरिए पूरे भारत को जोड़ने की कोशिश की....लेकिन उन्हीं के प्रदेश में हो रही इस घटिया राजनीति हम सब के लिए शर्म और डूब मरने की बात है..... महाराष्ट्र में हो रही घटिया राजनीति पर आपका लेख बहुत ही प्रासंगिक दिखाई दे रहा है.....सभी दल इस गंदगी में बराबर के हकदार है.....चाहे वो राज ठाकरे की एमएनएस हो...बाल ठाकरे की शिवसेना....बीजेपी हो या सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी.....बाल ठाकरे के सचिन पर सामना मे दिया गए बयान को देश को टुकड़ों में बांटने की बेकार, घटिया कोशिश और छुद्र राजनीति ही कही जा सकती है ....आपका हीं अजय

anand raman said...

Dear Shri Ojha ji,

you have done good job.while quoting Bal Ganga Dhar Tilak you forgot to mention the name of Sri S A Dange who was great leader of Communist Party of India and belongs to Maharastra.Similarly Late Qaifi Azami and his daughter Ms. Sabana Azami has also done work for the whole community.

Regds

A.R.Tewari