
स्मिता ठाकरे ने बगावत कर दी है। वे शिव सेना से अलग होकर कांग्रेस में जाने की तैयारी कर रही हैं। यहां आकर उनकी बगावत राज ठाकरे की बगावत से अलग हो जाती है। करीब तीन साल पहले राज ठाकरे ने अपने चाचा और शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) का गठन किया था। स्मिता ठाकुर भी ठाकरे परिवार की बहू हैं। वे इस मामले में राज से भी अधिक बालासाहेब की करीब हैं कि वे बाला साहब के बड़े बेटे जयदेव की पत्नी हैं। जयदेव ठाकरे ने पहले ही बालासाहेब के निवास "मातोश्री' से अपने को अलग कर लिया था। तब स्मिता ने "मातोश्री' में ही रहने का फैसला किया। वे बाद में जुहू के अपने बंगले में गई थीं। यानि कि पारिवारिक विवाद के बावजूद वह शिवसेना से कुछ उम्मीद कर रही थीं। राज ठाकरे की तरह उनकी उम्मीदें भी अधूरी रह गर्इं तो उन्होंने शिवसेना को बॉय- बॉय बोलने का फैसला कर लिया है। यहां आपको लग सकता है कि राज और स्मिता, दोनों की अधूरी महत्वाकांक्षा ने ही उन्हें बगावत के लिए प्रेरित किया। यह काफी हद तक सच है। इसके बावजूद शुभ यह है कि स्मिता पूरे देश की जगह सिर्फ महाराष्ट्र की चिंता नहीं कर रही हैं। शायद मराठा मानुस का नारा लगाने के लिए उन्हें भी एक सेना बनानी पड़ती। उन्हें भी ये कहना पड़ता कि मराठियों का हक उत्तरी भारत, और उनमें भी सबसे अधिक बिहारी ले जा रहे हैं। यह कहना आसान था,पर इस मानसिकता के साथ होने के लिए कुछ और कर गुजरने का साहस (दुस्साहस कहना ज्यादा ठीक होगा) करना पड़ता। क्या ऐसा दुस्साहस ठाकरे परिवार की एक और सदस्य नहीं कर सकती थी। जवाब के लिए बहुत परेशान नहीं होना है। मराठा मानसिकता के नाम पर किसी उत्तरी भारतीय समुदाय पर हमला, अथवा कथित रूप से मराठा मानसिकता के खिलाफ काम करने वाली मीडिया को निशाना बनाना उनके लोगों के लिए भी मुश्किल काम नहीं था। आखिर इस काम के लिए मुट्ठी भर भीड़ ही तो चाहिए। यह भीड़ कम से कम मुंबई में नामुमकिन तो नहीं है। ऐसा नहीं कर उन्होंने सोनिया गांधी और राहुल गांधी से प्रेरित होने की बात स्वीकारी है। यह शुभ इस अर्थ में नहीं है कि वे शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में जा रही हैं। सच्चाई ये है कि स्मिता एक कट्टर क्षेत्रीय और काफी हद तक संकुचित दायरे में काम करने वालों का साथ छोड़ रही हैं। शिवसेना अथवा मनसे का संकुचन देशहित से उपर मराठा हित को रखता है। अड़तालीस साल की फिल्म निर्माता स्मिता पाटिल को ये समझ चाहें जैसे भी आई हो, इस समय विवाद का कोई कारण नहीं होना चाहिए। मैं मानता हूं कि उनकी पसंद कोई और पार्टी भी हो सकती थी। शायद कांग्रेस को पसंद करने का कारण केंद्र और महाराष्ट्र में उसका सत्तासीन होना ही है। कांग्रेस तत्काल भले न करे, कुछ दिनों बाद किसी सदन का सदस्य बनने की स्मिता की इच्छा पूरी हो सकती है। फिर भी क्या क्षेत्रीयता को देशहित से उपर रखने वालों को उन्ही के परिवार से बगावत का स्वागत नहीं होना चाहिए?